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नाना॒ हि वां॑ दे॒वहि॑त॒ꣳ सद॑स्कृ॒तं मा सꣳसृ॑क्षाथां पर॒मे व्यो॑मन्। सुरा॒ त्वमसि॑ शु॒ष्मिणी॒ सोम॑ऽए॒ष मा मा॑ हिꣳसीः॒ स्वां योनि॑मावि॒शन्ती॑ ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नाना॑। हि। वा॒म्। दे॒वहि॑त॒मिति॑ दे॒वऽहि॑तम्। सदः॑। कृ॒तम्। मा। सम्। सृ॒क्षा॒था॒म्। प॒र॒मे॒। व्यो॑म॒न्निति॒ विऽओ॑मन्। सुरा॑। त्वम्। असि॑। शु॒ष्मिणी॑। सोमः॑। ए॒षः। मा। मा॒। हि॒ꣳसीः॒। स्वाम्। योनि॑म्। आ॒वि॒शन्तीत्या॑ऽवि॒शन्ती॑ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा और प्रजा कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजा और प्रजा के जनो ! (नाना) अनेक प्रकार (सदः, कृतम्) स्थान किया हुआ (देवहितम्) विद्वानों को प्रियाचरण (वाम्) तुम दोनों को प्राप्त होवे जो (हि) निश्चय से (स्वाम्) अपने (योनिम्) कारण को (आविशन्ती) अच्छा प्रवेश करती हुई (शुष्मिणी) बहुत बल करनेवाली (सुरा) सोमवल्ली आदि की लता हैं, (त्वम्) वह (परमे) उत्कृष्ट (व्योमन्) बुद्धिरूप अवकाश में वर्तमान (असि) है, उसको तुम दोनों प्राप्त होओ और प्रमादकारी पदार्थों का (मा) मत (संसृक्षाथाम्) संग किया करो। हे विद्वत्पुरुष ! जो (एषः) यह (सोमः) सोमादि ओषधिगण है, उसको तथा (मा) मुझ को तू (मा) मत (हिंसीः) नष्ट कर ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - जो राजा-प्रजा के सम्बन्धी मनुष्य बुद्धि, बल, आरोग्य और आयु बढ़ानेहारे ओषधियों के रसों को सदा सेवन करते और प्रमादकारी पदार्थों का सेवन नहीं करते, वे इस जन्म और परजन्म में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करनेवाले होते हैं ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजप्रजे कथं स्यातामित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(नाना) अनेकप्रकारेण (हि) किल (वाम्) युवाभ्याम् (देवहितम्) देवेभ्यः प्रियम् (सदः) स्थानम् (कृतम्) (मा) (सम्, सृक्षाथाम्) संसर्गं कुरुतम् (परमे) उत्कृष्टे (व्योमन्) व्योम्नि बुद्ध्यवकाशे (सुरा) सोमवल्ल्यादिलता। अत्र षुञ् अभिषवे इत्यस्माद्धातोरौणादिको रः प्रत्ययः। (त्वम्) सा (असि) अस्ति (शुष्मिणी) बहु शुष्म बलं यस्यामस्ति सा (सोमः) महौषधिगणः (एषः) (मा) (मा) माम् (हिंसीः) हिंस्याः (स्वाम्) स्वकीयाम् (योनिम्) कारणम् (आविशन्ती) समन्तात् प्रविशन्ती ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजप्रजाजनौ ! नाना सदस्कृतं देवहितं वां प्राप्नोति, या हि स्वां योनिमाविशन्ती शुष्मिणी सुरास्ति, त्वं परमे व्योमन् वर्त्तमानाऽसि तां युवां प्राप्नुतम्। मादकद्रव्याणि मा संसृक्षाथाम्, विद्वन् एष सोमोऽस्ति, तं मा च त्वं मा हिंसीः ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - ये राजप्रजास्थमनुष्या बुद्धिबलारोग्यायुर्वर्द्धकानोषधिरसान् सततं सेवन्ते, प्रमादकरांश्च त्यजन्ति, तेऽत्र परत्र च धर्मार्थकाममोक्षसाधका भवन्ति ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे (राजा व प्रजा) बुद्धी, बळ, आरोग्य व आयुष्य वाढविणाऱ्या औषधांच्या (सोमवल्ली वगैरे) रसांचे सेवन करतात व प्रमाद वाढविणाऱ्या पदार्थांचे सेवन करीत नाहीत ते या जन्मात व परजन्मात धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध करू शकतात.